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ये अनुराग के रंग रंगी,
रसखान खरी रसखान की भाषा।
यामैं घुरी मिसुरी मधुरी,
यह गोपिन के अधरान की भाषा।
को सरि याकी करैं कवि 'व्यास'
ये भाव भरे अखरान की भाषा।
सूर कही तुलसी नैं लही,
प्रभु पांयन सौं परसी ब्रजभाषा।
देव-बिहारी करी उर धारन,
मोतिन की लर-सी ब्रजभाषा।
भूषन पाय भवानी भई,
कवि 'व्यास' हिये हरषी ब्रजभाषा।
मतिराम के आनन में उमहीं,
घन आनंद ह्वै बरसी ब्रजभाषा।