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"प्रकट हु‌ए थे धराधाम में / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर

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  भोगासक्ति-विनाशक, भव-बाधा-हर, दायक-प्रेम अनूप॥
 
  भोगासक्ति-विनाशक, भव-बाधा-हर, दायक-प्रेम अनूप॥
 
  प्रेम कृष्ण का, प्रेम कृष्ण में, स्वयं कृष्ण ही निर्मल प्रेम।
 
  प्रेम कृष्ण का, प्रेम कृष्ण में, स्वयं कृष्ण ही निर्मल प्रेम।
  ह में  मिले, बस, एकमात्र वह, वही हमारा योग-क्षेम॥
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  हमें मिले, बस, एकमात्र वह, वही हमारा योग-क्षेम॥
  
 
  कृष्ण-नाम-गुण गा‌ओ अविरत प्रेमसहित नाचो तज लाज।
 
  कृष्ण-नाम-गुण गा‌ओ अविरत प्रेमसहित नाचो तज लाज।

11:25, 31 मई 2014 के समय का अवतरण

 प्रकट हु‌ए थे धराधाम में पूर्ण परात्पर श्रीभगवान।
 परम दिव्य ऐश्वर्य-निकेतन, सुन्दरता-मधुरता-निधान॥
 दुष्ट को निज धाम भेजकर, साधु-जनों का कर उद्धार।
 किया धर्म का संस्थापन था, लेकर स्वयं दिव्य अवतार॥

 वही पुण्य तिथि भाद्र-‌अष्टमी, कृष्णपक्ष मंगलमय आज।
 सुरभित श्रद्धा-सुमन-राशि से सभी सजाकर मंगल साज॥
 नन्दालय में आज महोत्सव वही हो रहा मधुर विशाल।
 शीघ्र बुझा देगा जो भव-दावानल सहसा अति विकराल॥

 हम भी सब मिल आज मनायें वही महोत्सव मंगलरूप।
 भोगासक्ति-विनाशक, भव-बाधा-हर, दायक-प्रेम अनूप॥
 प्रेम कृष्ण का, प्रेम कृष्ण में, स्वयं कृष्ण ही निर्मल प्रेम।
 हमें मिले, बस, एकमात्र वह, वही हमारा योग-क्षेम॥

 कृष्ण-नाम-गुण गा‌ओ अविरत प्रेमसहित नाचो तज लाज।
 बनो कृष्णभक्त के भक्त के अनुगामी सहित समाज॥
 मधुर मनोहर मंगलमय श्रीराधा-माधव का सब काल।
 करते रहो स्मरण नित संतत, पल-पल होते रहो निहाल॥