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"नज़र मिला न सके उससे / कृष्ण बिहारी 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद। | |
− | नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के | + | वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद। |
− | वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के | + | |
मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को, | मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को, | ||
− | किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के | + | किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के बाद। |
ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें, | ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें, | ||
− | वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के | + | वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद। |
कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की, | कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की, | ||
− | छुपाता सर मैं कहाँ तुम से रस्म-ओ-राह के | + | छुपाता सर मैं कहाँ तुम से रस्म-ओ-राह के बाद। |
गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का, | गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का, | ||
− | जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के | + | जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद। |
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22:42, 1 जून 2014 का अवतरण
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद।
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद।
मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को,
किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के बाद।
ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें,
वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद।
कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की,
छुपाता सर मैं कहाँ तुम से रस्म-ओ-राह के बाद।
गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,
जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद।