भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गप्प-सबद / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह= }} आंधी में उडियो न सखी, मत आंधी मे...)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
 
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=
+
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
 
}}
 
}}
  
आंधी में उडियो न सखी, मत आंधी में उडियो।<br>
+
 
 +
 
 +
 
 +
 
 +
 
 +
आंधी में उड़ियो न सखी, मत आंधी में उड़ियो।<br>
 
ओ३म लिखा स्कूटर दौड़ा राम लिखा कर कार<br>
 
ओ३म लिखा स्कूटर दौड़ा राम लिखा कर कार<br>
 
लेकिन पप्पी दी गड्डी पर न्यौछावर संसार<br>
 
लेकिन पप्पी दी गड्डी पर न्यौछावर संसार<br>
 
उन्हीं का होना है संसार<br>
 
उन्हीं का होना है संसार<br>
बस न तू आंधी में उडियो<br><br>
+
बस न तू आंधी में उड़ियो<br><br>
  
 
धक्-धक्-धक्-धक् काँपे हियरा थर-थर-थर-थर पैर<br>
 
धक्-धक्-धक्-धक् काँपे हियरा थर-थर-थर-थर पैर<br>
 
अलादीन को बेढब सूझी बेमौसम यह सैर<br>
 
अलादीन को बेढब सूझी बेमौसम यह सैर<br>
 
बिना चप्पू-लंगर यह सैर<br>
 
बिना चप्पू-लंगर यह सैर<br>
ज़रा आंधी में मत उडियो<br><br>
+
ज़रा आंधी में मत उड़ियो<br><br>
  
खाना खा लेटी ही थी झांसी की रानी थोडा<br>
+
खाना खा लेटी ही थी झांसी की रानी थोड़ा<br>
वहीं खाट के पास बंधा था उस का मश्की घोडा<br>
+
वहीं खाट के पास बंधा था उस का मश्की घोड़ा<br>
 
बड़ी देर से मक्खी उसको एक कर रही तंग<br>
 
बड़ी देर से मक्खी उसको एक कर रही तंग<br>
 
खिसियाई रानी ने जब देखे उस के ढंग<br>
 
खिसियाई रानी ने जब देखे उस के ढंग<br>
 
चीखी, 'नुचवा दूंगी मैं तेरे ये चारों पंख<br>
 
चीखी, 'नुचवा दूंगी मैं तेरे ये चारों पंख<br>
तुडा दूँगी मैं आठों पैर<br>
+
तुड़ा दूँगी मैं आठों पैर<br>
अरी, फिर आंधी में उडियो।'<br><br>
+
अरी, फिर आंधी में उड़ियो।'<br><br>
  
 
देस बिराना हुआ मगर इस में ही रहना है<br>
 
देस बिराना हुआ मगर इस में ही रहना है<br>
 
कहीं ना छोड़ के जान है, इसे वापस भी पाना है<br>
 
कहीं ना छोड़ के जान है, इसे वापस भी पाना है<br>
बस न तू आंधी में उडियो। मती ना आंधी में उडियो।
+
बस न तू आंधी में उड़ियो। मती ना आंधी में उड़ियो।

18:50, 12 जनवरी 2008 का अवतरण




आंधी में उड़ियो न सखी, मत आंधी में उड़ियो।
ओ३म लिखा स्कूटर दौड़ा राम लिखा कर कार
लेकिन पप्पी दी गड्डी पर न्यौछावर संसार
उन्हीं का होना है संसार
बस न तू आंधी में उड़ियो

धक्-धक्-धक्-धक् काँपे हियरा थर-थर-थर-थर पैर
अलादीन को बेढब सूझी बेमौसम यह सैर
बिना चप्पू-लंगर यह सैर
ज़रा आंधी में मत उड़ियो

खाना खा लेटी ही थी झांसी की रानी थोड़ा
वहीं खाट के पास बंधा था उस का मश्की घोड़ा
बड़ी देर से मक्खी उसको एक कर रही तंग
खिसियाई रानी ने जब देखे उस के ढंग
चीखी, 'नुचवा दूंगी मैं तेरे ये चारों पंख
तुड़ा दूँगी मैं आठों पैर
अरी, फिर आंधी में उड़ियो।'

देस बिराना हुआ मगर इस में ही रहना है
कहीं ना छोड़ के जान है, इसे वापस भी पाना है
बस न तू आंधी में उड़ियो। मती ना आंधी में उड़ियो।