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"महानगर में आज / अंजू शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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दर्द के तपते माथे पर शीतल ठंडक सी
+
अक्सर, जब बिटिया होती है साथ
मेरी बेटी
+
और करती है मनुहार
मैं ओढा देना चाहती हैं  तुम्हे
+
एक कहानी की,
अपने अनुभवों की चादर
+
रचना चाहती हूँ
माथे पर देते हुए एक स्नेहिल बोसा
+
...सपनीले इन्द्रधनुष,
मैं चुपके से थमा देती हूँ
+
चुनना चाहती हूँ
तुम्हारे हाथ में
+
...कुछ मखमली किस्से,
कुछ चेतावनियों भरी पर्चियां,
+
साथ ही  कर देना चाहती हूँ
+
आगाह गिरगिटों की आहट से
+
  
तुम जानती हो मेरे सारे राज,
+
यूँ हमारे मध्य तैरती रहती हैं
बक्से में छिपाए गहने ,
+
कई रोचक कहानियां,
चाय के डिब्बे में
+
किन्तु इनमें
रखे घर खर्च से बचाए चंद नोट,
+
परियों और राजकुमारियों के चेहरे
अलमारी के अंदर के खाने में रखी
+
इतने कातर पहले कभी नहीं थे,
लाल कवर वाली डायरी,
+
औचक खड़ी सुकुमारियाँ
और डोरमेट के नीचे दबाई गयी चाबियां
+
भूल जाया करती हैं
पर नहीं जानती हो कि सीने की  गहराइयों में
+
टूथपेस्ट के विज्ञापन,
तुम्हारे लिए अथाह प्यार के साथ साथ
+
और भयावह उकाबों पर सवार मुस्कानें
पल रही हैं  
+
तब खो जाती हैं
कितनी ही चिंताएँ,  
+
किसी सुदूर लोक की वादियों में,
  
मैं सौंप देती हूँ तुम्हे पसंदीदा गहने कपडे,
+
ऊँची कंक्रीट की बिल्डिंगें,
भर देती हूँ संस्कारों से तुम्हारी झोली,
+
एकाएक बदल जाती हैं
पर बचा लेती हूँ  चुपके से सारे दुःख और संताप
+
खौफनाक आदिम गुफाओं में
तब मैं  खुद बदल जाना चाहती हूँ  एक चरखड़ी में
+
सींगों वाले राक्षसों के मुक्त अट्टहास
और अपने अनुभव के मांजे को तराशकर
+
तब उभर आते हैं
उड़ा देना चाहती हूँ
+
"महानगर में आज" के कॉलम में,
तुम्हारे सभी दुखों को बनाकर पतंग
+
छलावा दबे पांव आता है
कि कट कर गिर जाएँ ये
+
विश्वास का मुखौटा लगाये
काली पतंगे सुदूर किसी लोक में,  
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और संवेदनाओं की कब्र के ठीक ऊपर
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हर उम्र की मादा बदल जाती है
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एक सनसनीखेज सुर्खी में,  
  
चुरा लेना चाहती हूँ 
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सदियों पुरानी सभ्यता जी रही है
ख़ामोशी से सभी दु:स्वप्न
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अपने आधुनिकतम दौर के
तुम्हारी सुकून भरी गाढ़ी नींद से
+
गौरव को
और करा देती हूँ  उनका रिजर्वेशन
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और विकास के सबसे ऊँचे पायदान पर
ब्रहमांड के अंतिम छोर का,
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जब सभी थपथपाते हैं अपनी पीठ
इस निश्चिंतता के साथ
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तमाम सावधानियों के बावजूद
कि वापसी की कोई टिकट न हो,  
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यहाँ वहां से झांक ही लेती है ये सच्चाई
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कि गुमशुदगी से भरे पन्ने
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गायब हैं रोजनामचों से,
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और नीली बत्तियों की रखवाली ही
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आज प्रथम दृष्टतया है,
  
वर्तमान से भयाक्रांत मैं बचा लेना चाहती हूँ
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समारोह में माल्यार्पण से
तुम्हे भविष्य की परेशानियों से,
+
गदगद तमगे खुश है
उलट पलट करते मन्नतों के सारे ताबीज़
+
कि आंकड़े बताते हैं
मेरी चाहत हैं कि सभी परीकथाओं से विलुप्त हो जाएँ
+
अपराध घट रहे हैं,
डरावने  राक्षस,
+
और भेजने की कामना है तुम्हारी सभी चिंताओं को,
+
बनाकर हरकारा,  किसी ऐसे पते का
+
जो दुनिया में कहीं मौजूद ही नहीं है,
+
  
पल पल बढ़ती तुम्हारी लंबाई के
+
विदेशी सुरा, सुन्दरी और गर्म गोश्त
मेरे कंधों को छूने की इस बेला में,
+
मिलकर रचते हैं नया इतिहास,
आज बिना किसी हिचक कहना चाहती हूँ
+
इतिहास जो बताता है
संस्कार और रुढियों के छाते तले
+
कि गर्वोन्मत पदोन्नतियां
जब भी घुटने लगे तुम्हारी सांस
+
अक्सर भारी पड़ती हैं
मैं मुक्त कर दूंगी तुम्हे उन बेड़ियों से
+
मूक तबादलों पर...
फेंक देना उस छाते को जिसके नीचे
+
रह पाओगी सिर्फ तुम या तुम्हारा सुकून
+
मेरी बेटी...
+
 
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14:20, 4 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

अक्सर, जब बिटिया होती है साथ
और करती है मनुहार
एक कहानी की,
रचना चाहती हूँ
...सपनीले इन्द्रधनुष,
चुनना चाहती हूँ
...कुछ मखमली किस्से,

यूँ हमारे मध्य तैरती रहती हैं
कई रोचक कहानियां,
किन्तु इनमें
परियों और राजकुमारियों के चेहरे
इतने कातर पहले कभी नहीं थे,
औचक खड़ी सुकुमारियाँ
भूल जाया करती हैं
टूथपेस्ट के विज्ञापन,
और भयावह उकाबों पर सवार मुस्कानें
तब खो जाती हैं
किसी सुदूर लोक की वादियों में,

ऊँची कंक्रीट की बिल्डिंगें,
एकाएक बदल जाती हैं
खौफनाक आदिम गुफाओं में
सींगों वाले राक्षसों के मुक्त अट्टहास
तब उभर आते हैं
"महानगर में आज" के कॉलम में,
छलावा दबे पांव आता है
विश्वास का मुखौटा लगाये
और संवेदनाओं की कब्र के ठीक ऊपर
हर उम्र की मादा बदल जाती है
एक सनसनीखेज सुर्खी में,

सदियों पुरानी सभ्यता जी रही है
अपने आधुनिकतम दौर के
गौरव को
और विकास के सबसे ऊँचे पायदान पर
जब सभी थपथपाते हैं अपनी पीठ
तमाम सावधानियों के बावजूद
यहाँ वहां से झांक ही लेती है ये सच्चाई
कि गुमशुदगी से भरे पन्ने
गायब हैं रोजनामचों से,
और नीली बत्तियों की रखवाली ही
आज प्रथम दृष्टतया है,

समारोह में माल्यार्पण से
गदगद तमगे खुश है
कि आंकड़े बताते हैं
अपराध घट रहे हैं,

विदेशी सुरा, सुन्दरी और गर्म गोश्त
मिलकर रचते हैं नया इतिहास,
इतिहास जो बताता है
कि गर्वोन्मत पदोन्नतियां
अक्सर भारी पड़ती हैं
मूक तबादलों पर...