भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पड़ल छी छगुनतामेँ / यात्री" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यात्री |अनुवादक= |संग्रह=पत्रहीन ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:33, 16 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
को कहब हजूर
की कहब मालिक
पड़ल छी भारी छगन्तामें
चोटि गेल कोन धून कोढ़ ओ करेजकें
लगइछ छलिअइ पहिने
तिन तिन शए बोरा अही पीठ पर
आब मुदा मोशकिस सँ
लादि होइए शए शबा शए बोरा
दूनू उखड़ा मिला कँए...
की कहब हजूर!
की कहब मालिक!
पड़ल छी भारी छगुन्तामें
लगइए अजगुत अपनो
खा नइ होइए
पा भरि चाउरक भात
रूचि गेल ए नश्ट
पानि टा पिबइ छिअइ
ढकर ढकर दश खेप
झाजीक हुकुम छइन-
बौलट के ऊधए दहुन
आधा - छीधा हलुकाही बोरा
झाजीक प्रतापेँ जाइ छी खेपने
जिन्दाबाद सरकारी गोदाम!
जिन्दाबाद सरकार बहादुर!