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कच्ची सड़कक कातहिमेँ
देखल ल‘गे ल‘ग छोट छौन जोड़ा मंदिर
पुछलिअइ घसबाहिनिकेँ
ऐँ हए, के बनबओलक अछि
बीच बाघमेँ जोड़ा मंदिर?
उठा कँ’ खुर्पी समेत दहिना हाथ
ओम्हरे इंगित करैत
बाजलि भुटिआघसबाहिनि
थापित भेल छइन ओइ ठमा पीड़ी
भोकर राउत आ’ मुङिआ माइकेर
बूढ़ा-बूढ़ीक सारा पर
ठाढ़ क’ देलकइन’ ए बेटा जोड़ा मंडिल
धन्न ओहेन माए - बाप
धन्न एहेन पूत....
एक रती भ गेलहुँ ध्यानस्थ ठाढ़े-ठाढ़
झुका लेल माथ
भोकर राउत आ’ मुङिआ माइक स्मृति मेँ
दोसर दिन
पोखरिक भीड़ पर
भालसरिक छाहरिमे
सुस्ताइत पाओल सरजुगकेँ
कुशल-क्षेमक पूछा पेखीक बादे
कहलिअइ सरजुग राउतकेँः
ऐँ हओ सरजुग, बाप-माइक सारापर
तरउनी गौओमेँ कहाँ केओ ठाढ़ केने छल जोड़ा मंदिर!
पातर मोछवला पिंडश्याम ग्रामीण युवक
सरजुग राउत
बाजल निरभिमान स्वरमेँ
“ बूढ़ा अपनहि हाथेँ परूकाँ साल
रोपने रहथीन पाँच कट्ठा कुसिआर
तहीमहक शए-पाँचेक
लगा देलअनिए हुनके नाम पर
मासक भितरे दूनू परानी मुनि लेनखीन आंखि
किरिआ-करम, भोज-भातमेँ उठल हजारेक टाका
मुदा हमरा अपना त संतोख नहिए भेल तइसँ
“फागुन जाइत जाइत एमरो
मोलवला देलकइ पुरजी
राटन पर तउला एलिअइ ऊखि
दू दिन बाद आएल हाथ
नौ टा नमरी, सात टा दशटकही, एकटकही छओटा....
गामहिमेँ भेटि गेल
दू बोरी सीमटि, हजार तिनिएक पाकल पजेबा
बूढ़ा-बूढ़ीक मंडिल भ’ गेलइन तइआर सहजहिँ....”
एतबा कहि कँ’
मूड़ी झुका लेलक
खोंट’ लागल संकोचेँ दूबि
पातर मोछबला सरजुग राउत
कने आगू बढ़ि कँ’
ओकरा पीठ पर फेरैत अपन हाथ
कहलिअइ हम गद्गद भ’ कँ:
“आइ धरि अइ परोपटटामेँ
फुरल छलइ ककरो कहाँ ई बिखए!
देश-विदेश मुल्की दुनिआ जहान
धाङि आएल छो हम....
कहाँ कतउ देखलिअइए
माइ-बापक नामेँ तइआइ जोड़ा मंदिर
एइ, सरजुग, धन्न थिकाहतोँ!”
भेलइन संकोच भंजन
तखन पुनि बजलाइ
सरजुगक राउत उर्फ सरजुग यादवः
“हमरा बूढ़ा-बूढ़ीमेँरहइ छलइन अतŸाह मेल
ओहन केओ नहि देखने हैत कतउ
से, हमरा आउर अपनहुँ गबाह छिअइन
लोको केँ बूझल छइ नीक जकाँ
हमरा बूढ़ा-बूढ़ी मेँ कहाँ कहिओ भेलइन झगड़ादन
हमरा बूढ़ा-बूढ़ी मेँ कहाँ कहिओ रहलइन ओदाउत
कहबी छइ जे एक परान दू देह
एनमेन तकरे नमूना छलइथ हमर बूढ़ा-बूढ़ी
तही खातिर फुरल ई बात
ठाढ़ क देने छिअइन जोड़ा मंडिल
चढ़ा अबई छिअइन जा कँ’
दूनू गोटाक पीड़ी पर फूल
“ओइ सतकठबा कोलाक तीन धुर जमीन
उसर्गल जा चुकल छइन बूढ़ा - बूढ़ी क नाम पर
हमरा बिचारेँ जल्दी सँ जल्दी
लिखा पीढ़ी सेहो भेइए जाइ...”
फेर हमरा नजरिक थाह लैत बाजल सरजुग -
कनफुसकी आवाजमेँ!
“तरौनी गामक बाबू-भइआ लोकनि
हँसी उड़वइ छइथ हमर!”
तइपर कहलिअइ हम सरजुगकेँः
“धूः मद, इहो केओ बाजए!
बूझल नहि छहु तोरा ?
तरउनी गामक बातू-भइआ लोकनि
हँसी उड़बइ छथि हमरो!”