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"अपशकुनी तारे ने / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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धोने में बीत गया हर पल-छिन
 
धोने में बीत गया हर पल-छिन
              धुले नहीं पिछले दिन ।
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            धुले नहीं पिछले दिन ।
  
 
एक त्रिया-हठ ऐसा बिखरा है
 
एक त्रिया-हठ ऐसा बिखरा है
              बँध-बँध कर खुलता है
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          बँध-बँध कर खुलता है
 
जब कोई दूर का, पड़ोसी का
 
जब कोई दूर का, पड़ोसी का
 
               सम्वेदन छुलता है
 
               सम्वेदन छुलता है
  
 
आँगन को सागर करने की ज़िद
 
आँगन को सागर करने की ज़िद
              करती है पनिहारिन ।
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            करती है पनिहारिन ।
  
 
ऐसा भूचाल उठा है भीतर
 
ऐसा भूचाल उठा है भीतर
              ढुलक रहे हैं पर्वत
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            ढुलक रहे हैं पर्वत
 
रोक नहीं पातीं चन्दन बाहें
 
रोक नहीं पातीं चन्दन बाहें
              जाने क्यों दूरागत
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            जाने क्यों दूरागत
  
 
अपशकुनी तारे ने फेंक दिए
 
अपशकुनी तारे ने फेंक दिए
              मुट्ठी-भर कर दुर्दिन ।  
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            मुट्ठी-भर कर दुर्दिन ।  
 
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21:02, 20 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

धोने में बीत गया हर पल-छिन
            धुले नहीं पिछले दिन ।

एक त्रिया-हठ ऐसा बिखरा है
           बँध-बँध कर खुलता है
जब कोई दूर का, पड़ोसी का
              सम्वेदन छुलता है

आँगन को सागर करने की ज़िद
            करती है पनिहारिन ।

ऐसा भूचाल उठा है भीतर
            ढुलक रहे हैं पर्वत
रोक नहीं पातीं चन्दन बाहें
            जाने क्यों दूरागत

अपशकुनी तारे ने फेंक दिए
            मुट्ठी-भर कर दुर्दिन ।