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प्रयोजन आइ ई,
मनुज मनुज केँ मानय मनसँ थीक सहोदर भाइ ई।

एक ईशसँ निर्मित अछि ई संसारक सब प्राणी,
सबसँ ऊपर गुंजित हो नित ई कल्याणी वाणी,
द्वेष भाव लोकक अन्तस्तलसँ अविलम्ब बिलाइ ई।
प्रयोजन आइ ई,

ई धरती थिक रंग-मंच आ सब प्राणी अभिनेता,
विज्ञानक बल बनल मनुज भूगोल खगोल विजेता,
पसरल किन्तु विषमता दै अछि समताकेर दोहाइ ई।
प्रयोजन आइ ई,

अछि आतंकित विश्व न पजरय जगमे युद्धक ज्वाला,
पड़य न विज्ञानक गर्दनिमे पुनि नरमुण्डक माला,
सह-आस्तित्वक भाव मनुष्यक मनक दंभकेँ खाइ ई।
प्रयोजन आइ ई,