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पर उपकारी एहन महान
गाछ-वृक्ष सन अछि नहि आन।
होइ अछि गाछो वृक्ष प्रबुद्ध,
करय वायु मण्डलकेँ शुद्ध।
हम सब छोड़ै छी जे श्वास,
से बनि जाइछ कार्बन खास।
तकरा गाछ ग्रहण कऽ लैछ,
बदलामे ऑक्सीजन दैछ।
सकल वनस्पति परम पवित्र
प्राणी मात्रक बड़का मित्र।
एकर प्रसादेँ होइअछि बरखा,
गृहस्थीक चलइत अछि चरखा।
डारि पात हो वा फल फूल
बिचला धड़ अथवा जड़ि मूल।
सब अँगेँ उपकार करैछ,
सभक रोग-सन्ताप हरैछ।
कटहर, बड़हर, आम, लताम,
जतय ततय रोपू भरि गाम।
घिया-पुता सबसँ लुटबाउ,
अपनहु लऽ इच्छा भरि खाउ।
बड़ पाकड़ि पीपर जे पाबी,
बाटक काते कात लगाबी।
बाट-बटोहीकेँ विश्राम,
अपना बैसल चारू धाम।
बाबा औ किछु गाछ लगाउ,
बैसल बैसल पुण्य कमाउ।