भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बरसात को इतवार / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
अब चले आओ निमोही द्वार
 
अब चले आओ निमोही द्वार
                  पानी थम गया है
+
              पानी थम गया है
 
मिल गया बरसात को इतवार
 
मिल गया बरसात को इतवार
                  पानी थम गया है
+
              पानी थम गया है
  
 
साथ इन चंचल हवाओं के
 
साथ इन चंचल हवाओं के
 
पंख फैला कर दिशाओं के
 
पंख फैला कर दिशाओं के
 
उड़ न जाए मिलन का त्यौहार
 
उड़ न जाए मिलन का त्यौहार
                  पानी थम गया है
+
              पानी थम गया है
  
 
धमनियों में स्नेह के बादल
 
धमनियों में स्नेह के बादल
 
कर रहे ख़ामोश कोलाहल
 
कर रहे ख़ामोश कोलाहल
 
पलक पर हैं प्यास के अंगार
 
पलक पर हैं प्यास के अंगार
                  पानी थम गया है
+
              पानी थम गया है
  
 
धूप गोरी छोड़ कर अम्बर
 
धूप गोरी छोड़ कर अम्बर
 
आ गई छत की मुण्डेरी पर
 
आ गई छत की मुण्डेरी पर
 
आइना धर कर रही शृंगार
 
आइना धर कर रही शृंगार
                  पानी थम गया है
+
              पानी थम गया है
 
</poem>
 
</poem>

13:12, 11 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

अब चले आओ निमोही द्वार
               पानी थम गया है
मिल गया बरसात को इतवार
               पानी थम गया है

साथ इन चंचल हवाओं के
पंख फैला कर दिशाओं के
उड़ न जाए मिलन का त्यौहार
               पानी थम गया है

धमनियों में स्नेह के बादल
कर रहे ख़ामोश कोलाहल
पलक पर हैं प्यास के अंगार
               पानी थम गया है

धूप गोरी छोड़ कर अम्बर
आ गई छत की मुण्डेरी पर
आइना धर कर रही शृंगार
               पानी थम गया है