भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पावस का जन्म / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:54, 20 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

धरती सिहर उठी मन ही मन
लरज गरज घन बोला
चन्दा आसमान में डोला
कड़ी जेठ की दोपहरी में
सरपट पुरवैया चलती थी
चिल चिल धूप धूलि से मिल मिल
तपती और स्वयं जलती थी
दूर क्षितिज पर खिंच आयी थी
काली सी बादल की रेखा
आज ग्रीष्म के गर्भाशय में
नन्हे पावस शिशु को देखा
सूरज तपता था हो जैसे
तपा आग का गोला
चन्दा आसमान में डोला
बढ़ आये सैनिक बादल के
दल के दल बँट कर मड़राये
रूखे स्वर, सूखे अधरों पर
रिम झिम बन बरबस छितराये
चढ़ आया तूफान टूट कर
लगे बरसने तड़-तड़ ओले
जान पड़ा यह उड़ जाएगा
पकड़ बाँह में पर्वत को ले
झंझा से लड़ने वाले
विटपों ने भी बल तोला
चन्दा आसमान में डोला
अभी वनस्पति के आँगन में
छायी थी कुछ अजब उदासी
गर्मी की ऊमस में गुम-सुम
सोच रहा था विकल प्रवासी
पच्छिम के उस पार क्षितिज पर
सन्ध्या विरहिन फिर मुसकाई
दिग दिगन्त ने साध लिया दम
प्रकृति नर्त्तकी भी सकुचाई
आज भयानक रस चिड़ियों ने
अपने स्वर में घोला
चन्दा आसमान में डोला
बैठ आम की डाली पर
कोयल ने पंचम तान अलापी
प्रथम दिवस आषाढ़ देखकर
नाज उठा मन-मुग्ध कलापी
मेघों के झुरमुट में चन्दा
आँख मिचौनी खेल रहा है
पवन बनाकर ‘ट्राली’ घन-
खण्डों को आगे ठेल रहा है
स्वाती की आशा में बैठा
चातक ने मुँह खोला
चन्दा आसमान में डोला
झींगुर ने झंकार शुरू की
मेढ़क उछल लगा टर्राने
जलती दूब लगा मुसकाने
दिल में शौक लगा चर्राने
बूंदा बांदी हुई कि कृषकों
के मन में उल्लास भर गया
हरियाली भर गयी कि
सरसिज के मुख से मृदुहास झर गया
विकल विहग ने विहगी के
अन्तर को आज टटोला
चन्दा आसमान में डोला
लगी कल्पना परी नाचने
धन-खेतों में साज सजाकर
जन-गण-मन को लगी नचाने
एक नया संगीत बजाकर
ये किशोर गन्ने के पौधे
लहराये कमला के तट पर
उमड़ी किन्तु विषाद घटा
हा! कोशी तट के हर पनघट पर
धरती विवश बदलने वाली
है अब अपना चोला
चन्दा आसमान में डोला