भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"समय-2 / दीनदयाल शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:02, 2 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
ग़लत काम में गुस्सा आता, धीरज क्यों नहीं धरता मैं।
उम्मीदें पालूं दूजों से, ख़ुद करने से डरता मैं।।
आलस बहुत बुरी चीज है, किसको कैसे बतलाऊं।
आलस की नदिया में बैठा, अपनी गागर भरता मैं।।
समय की कीमत कब समझूंगा, समय निकल जाएगा तब।
समय सफलता कैसे देगा, कोशिशें ना करता मैं।।
सब कुछ जान लिया है मैंने, कुछ भी नहीं रहा बाकी।
मुझको कौन सिखा सकता है, अहंकार में मरता मैं।।
समय नहीं कुछ कहने का अब, ख़ुद कर लूं तो अच्छा है।
सीख शरीरां उपजे सारी, बाहर क्यों विचरता मैं।।