भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चिरयति करूँ या कविता लिखूँ / शिव कुमार झा 'टिल्लू'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव कुमार झा 'टिल्लू' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:36, 10 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

रीति छोह से आकुल गात
थी वो विकल अमावस रात
क्षण में लोहित अचल प्रतिबिम्ब
मायावरण सुमनावलि बिम्ब
मंजुल प्रीति की सौरभ रेखा
वैरागी मन ने कभी था देखा
तत्क्षण उस लंगड़े की गाथा
वक्र खलक से ठनका माथा
दीन मौलवी घनघोर मचाए
दे बाबू !स्वर किसी को ना भाए
अपलक सोचता कैसी दुनियाँ?
दानवीर सब बन बैठे बनियाँ
व्यापारी-वजीर गठरी सहलाता
चाकर का भविष्य -निधि खाता
सोचते उभरा मन में एक चित्र
घटना अविरल कलुष विचित्र
रोजी चाहत में एक अवला आई
सेठ मत्त देख धवल तरुणाई
काम के बदले लूटा अस्मत
उसके अंश में कैसी किस्मत?
इस गुनधुन में हो गया भोर
सुन विहग वृन्द के चहचह शोर
बिम्ब से बिम्ब टकराकर लुप्त
हुई आशु काव्य की किरण विलुप्त
 भाव सदृश अदृश्य सा साया
क्यों मैं अंतर में कवि मन पाया!
पर दुःख को हथियार बनाकर
अपने सुख का का कल्प सजाकर
परबुद्धि -दुष्ट प्रतिक्षण गाते हैं
पर अपनी विपत्ति में पछताते हैं
जल विलग मीन का अंतिम काल
 देख पथिक पथ चला सकाल
ऐसे चितवन में रहकर मैं
क्या अश्रूपूरित नयन से देखूँ!
हाथ माथ पर लिए सोचता
शूलबेधित तन से क्या सीखूँ!
किंकर्तव्यविमूढ़ विषुवत पर
चिरयति करूँ या कविता लिखूँ!!!