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"दार्शनिक दलबदलू / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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आए जब दल बदल कर नेता नन्दूलाल
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आए जब दल बदल कर नेता नन्दूलाल
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पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवाल
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राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदली
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नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए
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जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए
  
पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवाल
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समझे नेता-नीति को, मिला न ऐसा पात्र
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मुझे जानने के लिए, पढ़िए दर्शन-शास्त्र
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पढ़िए दर्शन-शास्त्र, चराचर जितने प्राणी
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उनमें मैं हूँ, वे मुझमें, ज्ञानी-अज्ञानी
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मैं मशीन में, मैं श्रमिकों में, मैं मिल-मालिक
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मैं ही संसद, मैं ही मंत्री, मैं ही माइक
  
ऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदली
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हरे रंग के लैंस का चश्मा लिया चढ़ाय
 
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सूखा और अकाल में 'हरी-क्रांति' हो जाय
राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदली
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'हरी-क्रांति' हो जाय, भावना होगी जैसी
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उस प्राणी को प्रभु मूरत दीखेगी वैसी
नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए
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भेद-भाव के हमें नहीं भावें हथकंडे
 
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अपने लिए समान सभी धर्मों के झंडे
जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए
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समझे नेता-नीति को, मिला न ऐसा पात्र
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मुझे जानने के लिए, पढ़िए दर्शन-शास्त्र
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मैं मशीन में, मैं श्रमिकों में, मैं मिल-मालिक
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सूखा और अकाल में 'हरी-क्रांति' हो जाय
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उस प्राणी को प्रभु मूरत दीखेगी वैसी
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अपने लिए समान सभी धर्मों के झंडे
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सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात ?
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जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी
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सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात ?
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उधर लुढ़क जाओ जिधर, देखो भरी परात
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देखो भरी परात, अर्थ में रक्खो निष्ठा
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कर्तव्यों से ऊँचे हैं, पद और प्रतिष्ठा
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जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी
 
दल की दलदल में, फँसकर मर जाता हाथी
 
दल की दलदल में, फँसकर मर जाता हाथी
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11:36, 18 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

आए जब दल बदल कर नेता नन्दूलाल
पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवाल
ऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदली
राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदली
नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए
जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए

समझे नेता-नीति को, मिला न ऐसा पात्र
मुझे जानने के लिए, पढ़िए दर्शन-शास्त्र
पढ़िए दर्शन-शास्त्र, चराचर जितने प्राणी
उनमें मैं हूँ, वे मुझमें, ज्ञानी-अज्ञानी
मैं मशीन में, मैं श्रमिकों में, मैं मिल-मालिक
मैं ही संसद, मैं ही मंत्री, मैं ही माइक

हरे रंग के लैंस का चश्मा लिया चढ़ाय
सूखा और अकाल में 'हरी-क्रांति' हो जाय
'हरी-क्रांति' हो जाय, भावना होगी जैसी
उस प्राणी को प्रभु मूरत दीखेगी वैसी
भेद-भाव के हमें नहीं भावें हथकंडे
अपने लिए समान सभी धर्मों के झंडे

सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात ?
उधर लुढ़क जाओ जिधर, देखो भरी परात
देखो भरी परात, अर्थ में रक्खो निष्ठा
कर्तव्यों से ऊँचे हैं, पद और प्रतिष्ठा
जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी
दल की दलदल में, फँसकर मर जाता हाथी