"चाबी / संतोष कुमार चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष कुमार चतुर्वेदी |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:13, 19 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
बंद मत हो जाना किसी ताले की तरह
लटक मत जना कभी किसी कुंडी से जकड़ कर
क्योंकि सुरक्षित नहीं होता कभी कुछ भी
इस दुनिया में
क्योंकि समय किसी खरगोश की तरह
कुलाँचें भरता चला जाता है
दूर... ...बहुत दूर
क्योंकि ओस की बूँद सब छोड़ छाड़ कर
चल पड़ती है धूप के साथ एक हो कर
होना तो
एक चाबी की तरह होना
खोलना
बंद पड़े दिलो दिमाग को
चले जाना किसी भी सफर पर
लोगों के साथ सहज ही
घूम आना
मेज, खूँटी, जेब, झोले, पर्स, रूमाल
या फिर आँचल के खूँट के प्रदेश से
तुम जब कभी अलोत होओ
लोग याद करें तुम्हें शिद्दत से
खोजें पागलों की तरह तुम्हें
हर जगह हर ठिकाने पर
जरूरत बन जाओ इस तरह
कि लोग रखें तुम्हें सहेज कर
और जब कभी तुम गुम हो जाओ
लोग परेशान हो जाय बेइंतहा
तुम्हारी याद में
लोगों को तैयार करानी पड़े
ठीक तुम्हारे ही जैसी शक्लोसूरत
ठीक तुम्हारे ही जैसी काया