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"ग़ज़ल (जाने यह किससे) / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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जाने यह किससे क्‍या लगा बैठा
 
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वो चांद से उतरा तो तारों में जा बैठा।
 
वो चांद से उतरा तो तारों में जा बैठा।
 
  
 
हमने सोचा था क्‍या के ऐसा होगा
 
हमने सोचा था क्‍या के ऐसा होगा
 
 
जो पास था वो मुफ़लिस का ख़्वाब बना बैठा।
 
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होशो-हवाश के मिरे क्‍या कहने
 
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सिराने मीर था जो पैताने कबीर जा बैठा।
 
सिराने मीर था जो पैताने कबीर जा बैठा।
 
  
 
समझाएँ कैसे किसे क्‍या समझाएँ
 
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बात आई थी दिल में के ज़बाँ कटा बैठा।
 
बात आई थी दिल में के ज़बाँ कटा बैठा।
 
  
 
फिरा जो सिर तो ख़ाब से जी लगा बैठा
 
फिरा जो सिर तो ख़ाब से जी लगा बैठा
 
 
ख़ाब तो ख़ाब था ये जा के वो जा बैठा।
 
ख़ाब तो ख़ाब था ये जा के वो जा बैठा।
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07:10, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

जाने यह किससे क्‍या लगा बैठा
वो चांद से उतरा तो तारों में जा बैठा।

हमने सोचा था क्‍या के ऐसा होगा
जो पास था वो मुफ़लिस का ख़्वाब बना बैठा।

होशो-हवाश के मिरे क्‍या कहने
सिराने मीर था जो पैताने कबीर जा बैठा।

समझाएँ कैसे किसे क्‍या समझाएँ
बात आई थी दिल में के ज़बाँ कटा बैठा।

फिरा जो सिर तो ख़ाब से जी लगा बैठा
ख़ाब तो ख़ाब था ये जा के वो जा बैठा।