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"पहाड़ सो रहे हैं / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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संध्या हो चुकी है | संध्या हो चुकी है | ||
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चांद से झड रही है धूल ... रोशनी की | चांद से झड रही है धूल ... रोशनी की | ||
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और पहाड ... सो रहे हैं | और पहाड ... सो रहे हैं | ||
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ऐसे में बस हरसिंगार जाग रहा है | ऐसे में बस हरसिंगार जाग रहा है | ||
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और बिछा रहा है फूल धरती पर | और बिछा रहा है फूल धरती पर | ||
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और सपने जग रहे हैं | और सपने जग रहे हैं | ||
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छोटी लडकी की आंखों में | छोटी लडकी की आंखों में | ||
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स्कूल पोशाक में | स्कूल पोशाक में | ||
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मार्च कर रही है वह पूरब की ओर | मार्च कर रही है वह पूरब की ओर | ||
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जिधर सो रहे हैं पहाड ... अंधियाले के | जिधर सो रहे हैं पहाड ... अंधियाले के | ||
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जहां अब उग रहा है भोर का तारा | जहां अब उग रहा है भोर का तारा | ||
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जिसके पीछे पीछे | जिसके पीछे पीछे | ||
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रश्मियों की रागिनी बजाती हुई । | रश्मियों की रागिनी बजाती हुई । | ||
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1994 | 1994 | ||
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07:18, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
संध्या हो चुकी है
चांद से झड रही है धूल ... रोशनी की
और पहाड ... सो रहे हैं
सो रही है चिडिया रोशनदान में
ऐसे में बस हरसिंगार जाग रहा है
और बिछा रहा है फूल धरती पर
और सपने जग रहे हैं
छोटी लडकी की आंखों में
स्कूल पोशाक में
मार्च कर रही है वह पूरब की ओर
जिधर सो रहे हैं पहाड ... अंधियाले के
जहां अब उग रहा है भोर का तारा
जिसके पीछे पीछे
आ रही है सवारी सूर्य की
रश्मियों की रागिनी बजाती हुई ।
1994