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17:32, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
इस बीच बहुत पानी बह चुका था
जिन्दगी और मौत की कशमकश में
उनके पास बची नहीं थी मनु की नाव
जिससे की जाती एक नई शुरुआत
समुन्द्र की तरह दिखने की ललक में
तिरोहित हो गई थी नदी की दुनिया
कटाव से टूट कर लगातार
धारा में समाते जा रहे थे किनारे
सैलाब में डूबी जा रही थीं आकृतियाँ
बहे जा रहे थे उनके छोटे-छोटे सुख
उजड़ रहा था आशियाना
बचाने के नाकाम हो रहे थे सारे नुस्ख़े
वायु-मार्ग में मची थी हलचल
आकाश में देवता कर रहे थे कूच
प्रलय के बाद क्या अभी भी बचा था जीवन
चील सी झपट्टे मारती मृत्यु से बचते हुए
बेसब्री से कर रहे थे वे किसी मसीहा का इंतजार
लगातार किसी राहत का इंतजार
नहीं बचा था उनके पास एक तिनका भी
कि मिलता उन डूबतों को सहारा
दूर से चलकर आई थी मीडिया की जीप
जिसमे भरी थी ख़ुशहाल ज़िन्दगी की हलचल
उनके पास भाग कर आ जुटी थी
बिलबिलाती फटेहालों की लाचार भीड़
जो देर तक करती रही राहत का इंतजार
पर वे तो आये थे उन्हीं से लेने
भूख और मौत के कुछ दर्दनाक किस्से
उनकी बदहवासी की कुछ बेतरतीब तस्वीरें
जो छपेगी कल के अखवार में
दिखाई जायेगी टी.वी.चैनलों पर
देर तक भीड़ देखती रही उनका जाना
टूट चुका था उनका ढाँढस का बाँध
वहाँ गुस्सा था, बेचैनी थी
अजीब सी छटपटाहट थी
इस भीच बहुत पानी बह चुका था
ज़िन्दगी और मौत की कशमकश में