भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तिलिस्म और सपने / रश्मि रेखा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि रेखा |अनुवादक= |संग्रह=सीढ़...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:28, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

पश्चिम में लहूलुहान हो डूबते
सूर्य की अस्त हुती लालिमा में
उगती दीखती है उनकी आकाश-गंगा
अपने असंख्य प्रतिबिम्बों से विस्मित करती हुई

पाताल लोकवासी इन देवदूतों के तिलिस्म
सम्मोहित कर रहे हैं हमें
भविष्य की सुन्दरतम आहट बन कर
और विस्मृत कर रहे है पहचान
तिलिस्म और सपनों की अलग-अलग बुनियाद के

पृथ्वी के किसी कोने में उगे सब्जबाग को
हमारी आँखों में उगाने की कोशिश में
वे हमारे सपने ख़रीदना चाहते हैं
जतन से पाले हुए हमारे सपने
जिन्हें बीज बनाकर रोपेंगे वे
हमारी अनंत इच्छाओं के उर्वर खेत में
ताकि काट सकें अपनी
 
किवाड़ खोल कर
दस्तक देते समय के बदले अंदाज में
जब उत्कीर्ण हो उठेगा यह बुनियादी अंतर
और साफ़-साफ़ दिखने लगेगा
चिड़ियों द्वारा सारा खेत चुग लिया जाना
तब क्या सपने भी बचे होगे हमारे पास

एक सपने ही तो हैं
जिनकी अनंत संभावनाओं से
भयभीत रहते हैं देवदूत