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22:35, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

अपने गहरे एकांत में
बहुत आत्मीय बातें करती हैं क़िताबें
दस्तक देकर आमंत्रित करती हैं
अपने शब्दों के साथ
एक सुदूर लम्बी यात्रा के लिए

नींद में धुलती हैं शमशेर की कविताऍ
साँसों में समा जाती हैं ग़ालिब की शायरी
आत्मा में गहरे उतर आती है मीरां
आसपास ही होते है फैज और मीर

आलमारी में लगी किताबों में
नक्षत्रों सी जगमगाती
कितनी अपनी लगती हैं वे क़िताबें
पिछली उतरती गर्मियों में
जो तुमने दी थीं
चन्दन की उत्कीर्ण कलम के साथ