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"भारतमाता का संदेश / नज़ीर बनारसी" के अवतरणों में अंतर

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07:03, 16 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

यह मजबूरियाँ और मुख़्तार बन कर
बिके जा रहे हो ख़रीदार बन कर

उम्मीदे वफ़ा और उन कमनजर <ref>संकीर्ण दृष्टि वाले</ref>से
जो अपनों में रहते हों अग़यार <ref>शत्रु</ref> बन कर ?

अगर हर तऱफ ुस्कराये मुहब्बत
हँसे रात भी सुबहे-बेदार बन कर
चमन की अगर ज़िन्दगी चाहते हो
चमन में रहा शाख़े-गुलज़ार बन कर

बहुत से रेयाकर <ref>धोखेबाज</ref> तुमको मिलेंगे
मगर तुम न मिलना रेयाकार बन कर

हमेशा से ख़ुद्दार <ref>स्वाभिमानी</ref> ही तुम रहे हो
जहाँ अब भी रहना तो ख़ुद्दार बन कर

क़दम जब जमाना तो बन कर हिमाला
ठहरना तो लोगे की दीवार बन कर

जो हँसना तो आँखें मिला कर क़ज़ा <ref>मृत्यु</ref> से
जो रोना तो भारत के ग़मख़्वार बन कर

जो छाना तो बादल की सूरत में छाना
बरसना तो तीरों की बौछार बन कर

अगर जंग करना ग़ुलामी से करना
कभी सर जो देना तो सरदार बन कर

जो झुकना बन के अर्जुन की झुकना
जो उठना तो टीपू की तलवार बन कर

वतन के जो काम आये उसका वतन है
लहू से जो सींचे उसी का चमन है

शब्दार्थ
<references/>