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"जागरण गान / नज़ीर बनारसी" के अवतरणों में अंतर

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07:04, 16 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

नफ़रतों को दिलों से मिटाते चलो
साथ क़दमों के दिल भी मिलाते चलो
आदमीयत के पौधे उगाते चलो
पेड़ इन्सानियत के लगाते चला

धूप पर छॉँव बन-बन के छाते चलो

उठ के लहराआ गंगो-जमन की तरह
सामने आओ सुबहे वतन की तरह
फैलो सूरज की पहली किरन की तरह
रौशनी रास्तों में लुटाते चलो

हर अँधेरे की धज्जी उड़ाते चलो

मिल के आगे बढ़ो होके सीनासिपर <ref>सामने होकर</ref>
जगमगाते चलो हर डगर हर नगर
अपना जीवन बनाना है सुन्दर अगर
सबकी जीवन सभाएँ सजाते चलो

आदमीयत की क़िस्मत जगाते चलो

हो अयाँ सबके चेहरे से शाने वतन
ज़िन्दगी में वो पैदा को बाँकपन
इक बहादुर के माथे पे जैसे शिकन
दिल से अहसासे ग़ुर्बत मिटाते चलो

इस ग़रीबी की मय्यत उठाते चलो

हर तरह से सँभलना है ऐ साथियो
मिल के इक साथ चलना है ऐ साथियो
वक्त का रूख़ बदलना है ऐ साथियो
जागो-जागो का नारा लगाते चलो

कोई सोने न पाए जगाते चलो

खिल उठे सबके दिल कीकली ऐ ’नजीर’
लाओ हर चेहरे पर ताज़गी ऐ ’नजीर’
छीन लो मौत से ज़िन्दगी ऐ ’नजीर’
छीन कर मौत पर मुस्कुराते चलो

हर उदासी के छक्के छुड़ाते चलो

बिजलियों की तरह मुस्कुराते चला
गोलियों की तरह सनसनाते चलो
वक़्त के साज़ पर गुनगुनाते चलो
साथियो जागरन गान गाते चलो

कोई सोने न पाए जगाते चलो

यूँ ही बढ़ती रहेंगी जो आबादियाँ
खेत कितने निगल जाएँगी बस्तियाँ
कम करो आने वाली परेशनियाँ
बोझ उठे जितना उतना उठाते चलो

अपनी मुश्किल को आसाँ बनाते चलो

ज़िन्दाबाद ऐ जवानाने जन्न्ात निशाँ
तुम जवाँ साल और हौसले नौजवाँ
बन के मेमारे <ref>निर्माता</ref> आज़ाद हिन्दोस्ताँ
सबके दिल में घर अपना बनाते चलो

मिल के नफ़रत की दीवार ढाते चलो

अज्में तामीर <ref>निर्माण उत्साह</ref> होने न दो मुज़मजिल <ref>सुस्त</ref>
जिन चिराग़ों से बुझते हों इन्साँ के दिल
उन चिराग़ों को पहले बुझाते चलो

बज़्मे इन्सानियत को सजाते चलो

सबके मज़हब का करते हुए एहतिराम <ref>आदर</ref>
तुम आवामी बनो और तुम्हारे अवाम
तुमको सबकी दुआ तुमको उबका सलाम
खुद बढ़ो सबको आगे बढ़ाते चलो

गीत सबकी मुहब्बत के गाते चलो

शब्दार्थ
<references/>