भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गिल्ला गुजारी / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस |संग्रह=चकल्लस / पढ़ीस }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:08, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
द्याखउ-द्याखउ <ref>देखो-देखो</ref> दुदआ होरेउ,
युहु कउनु जबाना आयिगवा!
मुँहँ मूँदि-मूँदि अउँघान किह्यउ,
बिपतिन का बादरू छायि गवा।
कुछु आदि करउ उयि बातन की,
तुमका सब देउता कहति रहयिं।
अब हरहा गोरू हायि भयउ!
सबका युहु बाना भायि गवा।
जी तुमते सिट्टाचारू<ref>शिष्टाचार, तहज़ीब</ref> सिखिनि,
तुमहे ते आउबु-आबु सिखिनि,
अब अड्ड लगायि का अयिंठतिं हयिँ,
युहु उलटा जबाना छायि गवा।
च्यातउ-च्यातउ, हउ बडे़ चतुर,
कस भूलि गयउ कयि धुकुर-पुकुर।
सिंघन के सिंहयि बने रहउ,
अब चक्करू चक्करू खायि गवा!
शब्दार्थ
<references/>