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परताप सिंह! परताप सिंह!!
ओ, महराना परताप सिंह!!!
सिंसउेंदिया कुलु-भूखन, जग-मग
मनि, महराना परतापसिंह!
बूढ़ी महतारी ख़ातिर खिर-
पिति खायि-खायि का धाक<ref>प्रभाव, असर</ref> धर्यउ,
आँचर मा दागु न परयि दिह्यउ
सब राजु-पाटु स्वाहा कीन्ह्यउ।
तनु-मनु धनु अरपनु कयि दीन्ह्यउ,
ओ, महराना परतापसिंह!
ओ कउनि-कउनि किरला<ref>करतूत, करतब</ref> घर मा,
तिनका तुम का तनिकउ मान्यउ!
जंगलन पहारन मा बसिकयि<ref>रह कर, निवास करके</ref>,
तुम मातु-भूमि का पहिंचान्यउ
अंगारूयि अस तुम बरा किह्यउ,
ओ, महराना परतापसिंह!
तुम छक्के दिह्यउ छ्वँड़ायि बापुजी-
कउनि कही किहिंके, तिहिते।
छत्रापन केरि धजा<ref>ध्वजा, शोभ, प्रशस्ति</ref> फहरा-
यउ तुम अपने बल-पउरूख<ref>ताकत, पौरूषत्त</ref> ते।
सिंहन के सिंह रह्यउ स्वामी,
ओ, महराना परतापसिंह!
यह छीछाल्यादरि मनइन की,
तुम कउन्यउ जलमु न सहि पउतिउ।
बिटिया - महतारिन की दुरूगुति<ref>दुर्गति, दुर्दशा</ref>,
को देखि-देखि का ना करतिउ-
ग्वाहराइ<ref>चिल्लाकर बुलाना</ref> रहे सब, कहाँ गयउ ?
तुम महराना परतापसिंह!
राकस<ref>राक्षस, अमानव</ref> लरिका लयि-लयि भाजयिं<ref>भागे, भागना</ref>,
पण्डितजी पूजा कीन करयि!
जब तनुकु ग्वहारि<ref>गोहारि, आवाहान, विनती करना, आवाज देना</ref> करयिं दुखिया,
ठाकुर ल्वटिया<ref>द्रव रखने का पात्र, लुटिया, लोटा</ref> लयि-लयि भाजयिं!
आगे तुमते का कही कथा,
ओ महराना परतापसिंह!
तुम आवउ हिरदउँ जागि-जागि,
मुलु हम जायिति हयि सोयि-सोयि।
जब जलमु-जयन्ती आवति हयि,
तब हम आयिति हयि रोयि-रोयि।
तुम देखि लेउ, तुम सोचि लेउ,
ओ महराना परतापसिंह!
तुमरे तप की बलि बेदी पर,
का जानी क्यतने पंडित-बर,
रूचि-रूचि कयि हार चढ़ायिनि हयि,
कबिता के सुंदर फूलन पर।
लयि लेउ ‘‘पढ़ीसउ’’ की पाती-
श्री महराना परतापसिंह!