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16:12, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

फूले काँसन<ref>एक प्रकार की घास-कुश</ref> ते ख्यालयि,
घुँघुवार बार मुँहुँ चूमयिं।
बछिया-बछरा दुलरावयि,
सब खिलि-खिलि, खुलि-खुलि ख्यालयि<ref>खेलना</ref>
बारू के ढूहा <ref>ढेर, टीला</ref> ऊपर,
परभातु-अयिसि कसि फूली!
पसु पंछी मोहे-मोहे
जंगलु मा मंगलु गावयिं।
बरसायि सतऊ गुनु चितवयि <ref>देखना</ref>
कँगला किसान की बिटिया।
तितुली के पाछे दउरयि
थकि-थकि कयि ल्वाटयि - प्वाटयि;
लुकि - छपि कयि ब्यरझरियन<ref>छोटे बेर की एक जंगली किस्म का पौधा</ref> मा
तित्तुर के बच्चा पकरयि।
रोटी का कउरू चलावयि,
कबरा कुतवा ललचावयि;
पीठी पर बिल्लो रानी
न्यउरा<ref>नेवला-एक प्रकार का जीव</ref> ते खीसयि काढ़यिं।
लरिकई क पूर खजाना
कँगला किसान की बिटिया।
भ्वरहरे जगि वह आवयि,
टिल्लन <ref>टीलों</ref> पर बेनि बजावयि।
सब गोरू पॉछें दउरयिं,
फिर चाटयिं चुकरयिं, हुँकरयिं,
द्याखतयि पुँछारी<ref>मादा मोर, मोरनी</ref> नाचयिं,
ताल दयि मुरइला<ref>नर मोर</ref> उछरयिं।
साधे सनेहु की जउरी<ref>रस्सी</ref>,
जर - चेतन बाँधे घूमयिं।
बन-कन्या-असि किलकारयि<ref>किलकना, चिल्लाना</ref>
कँगला किसान की बिटिया।
जब आगि भरी आँखिन ते
सबिता दुनिया का द्याखयिं,
दस दिसि ते बादर दउरयिं
भरि करियारी के फीहा;
मुँह झाँपि लेयिं द्यउता का-
कुम्हिलायि न कहुँ कुँआरी;
जब रिमिक झिमिकि झरि लागयि,
बिरवा तकि छतुरी तानयिं,
कुस डाभन<ref>काँस की जाति के तरह की एक घास दर्भ</ref> ऊपर पनपयि
कँगला किसान की बिटिया।
दुइ घरी राति बीते पर
वह नदी तराई घूमयि।
म्यढ़की<ref>मादा मेंढ़क, मेंढ़की</ref> मछरी तकि-जकि कयि,
गुनगनि-गनि गीतु सुनावयिं।
मँझरा<ref>खेतों की रखवाली का बनाया गया विशेष स्थान</ref> के बीच मड़य्या
वह ऊँचा-खाली दउरयि,
जुगुनू<ref>जुगनू</ref> पियार के मारे
ग्वाड़न<ref>पैरों, पाँव</ref> तर दिया जरावयिं।
वह चली जाय निःकंटक<ref>निष्कंटक</ref>
कँगला किसान की बिटिया।

पयिरा पर पउढ़ी-पउढ़ी,
वह चितवइ चाकु चँदरमा।
मुसक्यायिं रूपु छबि छकि छकि
प्रेम की अरघ<ref>अर्ध्य</ref> अँजुरी भरि,
भ्याटयि<ref>भेंट करना, देना या मिलना</ref> अकास ते तारा-
दुगनायि दिपित<ref>दीप्ति</ref> देंही की।
बप्पा के तप की वेदी,
अम्मा की दिया-चिरय्या
धनवान की द्वासरि<ref>दूसरी</ref> दुनिया
कँगला किसान की बिटिया।

शब्दार्थ
<references/>