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बरगद के तरे बाउली<ref>बावड़ी</ref> पर
हिरदउँ<ref>हृदय</ref> के भीतर भाउ भरी।
उतरी बिन पखनन केरि परी
वह चंद्र लोक की किरनि जयिसि-
साँवरि-साँवरि सुन्दर स्यामा।
रसरी पर नव रस रमे जायिं,
गगरी तीनिउ गुन भरे जायि;
द्याखति माँ आँखी खुली जायिं
उइ सुबरन रेखा केरि झलक-
जब पानी भरयि लाग स्यामा।
गज्जी<ref>ओढ़नी</ref> की ब्वढ़नी हयि पुरानि,
मलु साफु-साफु धोयी-फींची।
कसि जोति जुआनी<ref>जवानी, यौवन</ref> आगमु<ref>आने वाला समय</ref> की
फाटे कपरा ते फूटि परयि।
सुन्दरापा केरि खानि स्यामा।
बिरवन पर पंछी झूलि रहे,
ख्यातन<ref>खेतों</ref> माँ सरसउँ फूलि रहे।
गोरू गउढ़ी<ref>पशुओं के चारागाह में बैठने का स्थान विशेष</ref> पर पुलकि-पुलकि
लीचर-बछरा<ref>गाय का बछड़ा</ref> कुल्याल<ref>उछल-कूद</ref> मारयिं।
अल्हर<ref>अल्हड़, नासमझ</ref> छवि चितयि रही स्यामा।
पातिन की पहुँची<ref>हाथ की कलाई में पहना जाने वाला आभूषण-कंगन</ref> हाथन मा,
फूलन की चूरामनि<ref>सिर के बालों का एक गहना-चूड़ामणि</ref> बाँधे।
मँुदरी कनफूल सिंकहुलन<ref>पत्तियों के जोड़ने वाली सींक</ref> के,
झुमका निमकउरी के झूलइँ।
का फूल परी उतरी स्यामा?
हन्नी<ref>हिरनी-सप्तर्षि मंडल का तारा समूह</ref> की बच्ची छोटि-छोटि
वह करइ पियारू पलाऊ हयि।
पुचकारि जगति ते कूदि परी,
दुलराइ रही, ब्यल्हरायि रही।
हन्नी ते हन्नी जसि स्यामा।
तन-मन की सबि बिसरि रही
ख्यलबखरी<ref>खेल-खिलवाड़</ref> मा पसु पंछिन की।
मन के ब्यकार<ref>बिकार, दोष</ref> थर्रायि रहे,
उयि तपसी की कन्या आगे,
असि दूध की धोयी वह स्यामा।
भय्या तनकुन्ना<ref>सबसे छोटा</ref> आवा, तिहिंका
दीदी उबहनि<ref>कुएँ से पानी भरने की रस्सी</ref> दयि दिन्हिसि।
टेटे<ref>कमर, टेंट</ref> पर गगरी छलकि रही,
बह मुहुरू-मुहुरू<ref>धीरे-धीरे, शनैः शनैः</ref> घर का डगरी;
हन्नी असि चितयि रही स्यामा।
कँगला किसान घर जलमी जो
रोटी -कपरा का तरसयि मुलु;
सॉचे सुख ते सुबरन बरसयि,
जब ‘बापू’ ग्वहरावयि-
बरसायि स्वनहुली छबि स्यामा।
टुकुवा प्यउँदा घँघरी ते हँसि
दुनियादारन ते पूँछि रहे!
यह बिस्व<ref>विश्व, संसार, जगत, दुनिया</ref> पिता की पुतरी तुम,
कउनी आँखिन ते देखि रह्यउ?
आधी उघारि सयानि स्यामा!
मुलु, राजु-पाटु, रूपया तुमार,
वहि के ठ्यँगरन<ref>ठेंगा, अँगूठा</ref> पर नाचि रहे।
माता विथरउती हयिं यी छबि
पर हीरा-मोती किरनिन ते;
तन-मन ते पूरि रही स्यामा।