भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सतखण्डे वाली / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस |संग्रह=चकल्लस / पढ़ीस }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:16, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

सँझबतिया सुरजा - बइठनि
गउ-धूरि केरि वह ब्यिरिया।
चउक के चउ - मुहाने पर,
जब चकित थकित ह्वयि देख्यन
समहे तुमहे बइठी हउ
रूप के समुंद्र अन्हाये
खिरकी पर महकि रही हउ,
संुदरि सतखंडेवाली।
आँखिन ते आँख मिलउतयि
बसि, बहयि पुरानि ठठोली।
कसि कयि तिरछी चितवनि पर
बउछार किह्यउ बानन की!
यह अबकिउ केरि तयारी
माटी मा मेटि मिलायउ,
असि जफा कसी! अलबेली
प्यारी सतखंडेवाली।
उहु पहिल-पहिल दिनु कसिकयि,
हम तुमते पहिले जाग्यन ?
कुछु किहे नसा - पानी - अस
फिरि झूमयि - घूमयि लाग्यन।
तुम देखि, दाबि कनिया मा
फेक्यउ अंटा ते खाले
कस गिरय्न नापदाने माँ
सुंदरि सतखंडेवाली।
बस यिहे चूक पर चपला
कँगला कयि डारय्उ रानी।
जब मिलिउ तनुकु तालन पर
कउँधा-अस कउँधि गयिउ तुम।
हम तेलु - फुलेलु लगाये
किन्नर - कुमार बनि आये,
मुलु मटकि - मटकि मटकाओ
प्यारी ससतखंडेवाली।
जब पाउब पकरि पिछउरा<ref>स्त्रियों के ओढ़ने की चादर</ref>
समुझब युहु ट्वाना टटका।
तुमरे पियार के आँसू
हमका कस न पघिलयिहयिं।
तुम का छाती मा कसि कयि
हॉ अथयि<ref>डूबना, समाप्त, नष्ट</ref> जाब ऊसर मा!
तब रूपु - अरूपु द्यखायउ
सुंदरि सतखंडेवाली।

शब्दार्थ
<references/>