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"लरिका / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर

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जो सरल सरल, दूधे ध्वावा,
सीधा, सादा, आँचा कंचनु<ref>स्वर्ण, सोना</ref> ;
साँचे बाप का सँबारा निस-
दिनु वहयि आयि सुन्दर लरिका।
जो पढ़इ-लिखइ साधना करयि,
सुखदुख का अर्थुयि भूलि जायि,
हाँ, वहयि बड़ा राजा होयी,
बसि, वहयि आयि सुन्दर लरिका।
जिहिका जसु मनई भरि गावयि,
जो सदाँ करयि स्यावा<ref>सेवा</ref> सबकी;
हाँ बड़ी - बड़ी बातयि स्वाचयि,
तब वहयि आयि सुन्दर लरिका।
जो दुखियन के दुख दउरि परयि,
सुखियन ते डाह न कहँू करयि,
बसि, वहयि क्यसन कान्हा होयी,
बसि, वहयि आयि सुन्दर लरिका।
जो बिटियन का रछपालु<ref>रक्षक, रक्षपाल</ref> होयि,
लरिकन की दाहिनि बाँह होयि,
जो महतारिन का लालु होयि,
बसि, तउनु आयि सुन्दर लरिका।
जो दुनिया - भर की ढाल होयि,
सद गुन की मोहन माल होयि।
कंगालउ जिहि का छुइ पावयि,
हो, वहयि आयि सुन्दर लरिका।
जो अपनयि मा हयि मतबाला,
वुहु छूँछ-छूँछ<ref>रिक्त-खाली</ref> रस का प्याला,
उयि तीर पियासे का अयि हयि!
वुहु कस होयी सुन्दर लरिका ?
जो अपन-बिराने पर झगड़ी,
सो कयिसे पढ़ी बड़ी-विद्या
ना, ना, उहु कहाँ बड़ा होयी!
तब कयिस आयि सुन्दर लरिका।
जो पटिया पारे माँग सवारे,
हयि छुछवाति<ref>बेवजह इधर-उधर दौड़ना</ref> छछँुदरिन मा;
वुहु पूर - पूर ‘‘लोफरू’’ होयी,
कयिसे होई सुंदर लरिका।
जो अपने कुल का दिया आयि,
संघी-साथिन का हिया आयि।
अब बहयि जितंगरू<ref>परम विजयी</ref> पूतु आयि,
बसि, बहयि आयि सुंदर लरिका।
जिहिका सब देखे जिया करयिं
जिहिका सब हे दमु भरा करयि
दुनिया का वहयि खजाना हयि,
हाँ, वहयि आयि सुंदर लरिका।

शब्दार्थ
<references/>