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जिहिका हिरदउँ क्वाँवल-क्वाँवल<ref>कोमल-कोमल</ref>,
ब्वालति मा जिहि के फूल झरयि।
जो अपने कुल की कानि करयि,
द्यास की उज्यरिया वहयि आयि,
अउ वहयि आयि सुन्दरि बिटिया।
जो पढ़यि-लिखयि खूब, साथ-साथ,
गिरिहितिउ<ref>गृहस्थी</ref> क्यार कुछु कामु करयि।
बिटियन के सुंदन लच्छन ते,
जो आगे उत्तिम नारि होय,
हाँ तउनि आयि सुंदरि बिटिया।
जो दुनिया के लरिकन का अप-
ने सगे भाइ ते अधकी कयि,
बूढ़्यन का बाप ति ज्यादा पू-
जयि सबते मधुर-मधुर ब्वालयि।
बसि, वहयि आयि सुंदरि बिटिया।
लरिकईं ति करयि तपस्या तब,
तउ सोरही मा कंचनि काया,
पावयि सुन्दरि-सुन्दरि तिहि ते
दुलहा का बाँवाँ अंगु बनयि!
वह, वहयि आयि सुन्दरि बिटिया।
जब जायि बियाहे ससुरे मा,
साँची बातन, सुन्दर लच्छन
ते, वह अपने पति तीतम की
बनि जायि करेजे की पुतरी;
हम वहयि कहब सुन्दरि बिटिया।
जो भरी जुआनी की आँधी माँ
खुद वियाहु ढूँढ़यि निकसी।
वह खारी खाँड़ का जानी,
जिहि की आँखिन खुमारू बरसयि।
वह कब होयी सुन्दरि बिटिया।
बप्पा की अक्किल<ref>अक्ल, बुद्धि</ref> पर जब ते
ब्यइमानी <ref>बेईमानी</ref> के पाथर परिगे,
तबहे ते बिटिया अपनि रॉहॅ
काँटा ख्वभरे <ref>खेत में खूँटे नुमा ठूँठी</ref> मा साफु करयि।
मुलु, हम न कहब सुन्दरि बिटिया।
का, बठिययि पारे ते बिटिया
चउकस बइकुण्ठु, चली जायी?
वह पाँच भूत की देंही मा
सुखु ढूँढ़यि पति परमेसुर का;
फिरि कहाँ रही सुन्दरि बिटिया।
माना कुछु बादि बियाहे के
दुलहा की आँखी फूटि गईं!
तउ का उयि अँधरे मनई का
बिटिया तिलाक पर धरि द्याहयिं ?
अउ कहवयिहयिं सुन्दरि बिटिया।
जो आधी राति भ्वरहरे तकु
ठलुहन <ref>बेकार</ref> संग गल्ली कूचन मा,
मनु बहिलावयि का घूमी, हँसि
ब्यल्हराइ बिलय्यन कुतवन ते
वह कसि होई सुन्दरि बिटिया।
जिहिके सुन्दर गुन गरू-गरू,
करिया-गोरी की का चरचा।
वह बिटिया असि बिटिया रानी,
सुख, सुँदरापा की खानि जउनि
अब तउनि आयि सुन्दरि बिटिया।