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हम कनउजिया बॉभन आहिन
मरजाद पूरि बीसउ बिसवा,
‘‘हम कनउजिया बॉभन आहिन।’’
थाने पर वयिठ खरे खट-कुलु<ref>षट्कुल-उच्चकुल</ref>
‘‘हम कनउजिया बॉभन आहिन।’’
दुलहिनी तीनि, लरिका त्यारह,
सब भिच्छा-भवन ति पेटु भरयिं,
घर मा मूसा डंडयि प्यालयिं,
हम कनउजिया बॉभन आहिन।
बिटिया बयिठीं बत्तिस की,
पोती बर्स अठारह की झलकीं,
मरजाद का झंडा झूलि रहा,
हम कनउजिया बॉभन आहिन।
चउथेपन चउथ बियाहे के
बिहकरा बयिठ घर का घेरे,
चउथ दिन चउथो चाल चलीं,
हम कनउजिया बॉभन आहिन।
वह स्वारह की कचनारू<ref>एक प्रकार का फूल ‘कचनार’</ref> अयिसि,
हम सत्तरि के मूँहूँ बायि रहे,
म्वाँछन मा उकुवाई<ref>होली में जलने वाली जितने की मशाल ‘अलैया-बलैया’</ref> कूचिसि,
बर्धन की पूँछयि अँइठि-अँइठि,
भइँसिन का लट्ठन पीटि-पीटि,
सिरमउरन का सिरमउर बँधा,
हम कनउजिया बॉभन आहिन।
लरिकऊ चरावयिं हरहा, बिनु-
-आ कंडा बीनयिं बड़े चतुर,
दायिज के लाओ दुइ हजार,
हम कनउजिया बॉभन आहिन।
हर की मुठिया खुद गहि पायी,
तउ ख्यातन लछिमी फाटि परयि;
मुलु तीनि तिलोकु कहाँ जायी,
हम कनउजिया बॉभन आहिन।
गायित्रि-मुन्त्रु ‘भूर भूसा’ जपि-जपि रोजुइ चिल्लायिति हयि,
हम कनउजिया! हम कनउजिया!! हम कनउजिया बॉभन आहिन।