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"चंद्र-खिलौना / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर

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16:35, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

आ जा, आ जा भैया बार बार लूँ बलैया तेरी,
मान-मान मेरी मेरे निसि<ref>निशि, रासि</ref> महराजा रे;
राजा राजा दोऊ हिलि-मिलि खेलि केलि करैं,
बिजन<ref>पंखा, जंगल</ref> डलाऊँ गाऊँ बजै बीन बाजा रे।
बाजा बाजा तेरी तान ताक-थेई नाचा कान्ह,
छुनुक-छुनुक घँुघुरून छबि छा जा रे;
छा जा, छा जा अँटा मों उछंग पैठि प्यारे चंद !
बारे ब्रजचंद संग माखन तू खा जा रे।

नट नटनागर की ताल नाचु भोले भालु,
कान्हा बनै केहरि तू धाय मृग-छौना बन;
कानन-बिहारी करै गौवन की लीला तब,
हुँकर चुकर वाको बछा मरखौना बन।
साँवरौ सँबारै रूप गुनी तीन लोकवारो,
चमकि-चमकि चारू भाल को डिठौना बन;
बलि-बलि जाऊँ तेरी तन-मन वारूँ तो पै,
आ जा नेकु चंद, ब्रजचंद को खिलौना बन।

अरी, रो, जुन्हाई मनभाई निठुराई तजै,
मेरो लाल लपकि-लपकि कलपावे ना,
गजब गुजारै, करै गरब कहाँ को कहा-
चंदचूर इन चरनन चित्त लावे ना।

खीझि रह्यो मो पै, भली रीझि रह्यो तो पै, मान
मान ले मिताई अनखाई अनखावे ना;
तीनि लोक ठाकुर ठगौरा<ref>ठगी</ref> कर ठगि ठाढ़ो,
तूँ तो भैना ! आई, आई अब आवे-आवे ना।

मचलि-मचलि लाल, लख तो, जुलुम ठाने,
चढ़ती अकास धरि एती निठुरैया तू;
करती न कान, कान्ह धूर पै धुरेटो जाय,
सौत की सयानी सुन केती हरजैया तू।
मैया-मैया मोहन पुकारै मेरो प्रान इतै,
तनि न निराती उतै हाय दैया-दैया तू।
तीनि लोकवारो बन्यो नन्दघरवारो क्यों न,
एक लोकवारी थार पैठ जा जुन्हैया तू।

शब्दार्थ
<references/>