भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गहन इस रजनी में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |अनुवादक=धन्य...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:47, 18 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
गहन इस रजनी में
रोगी की धुँधली दृष्टि ने
देखा जब सहसा
तुम्हारा जाग्रत आविर्भाव,
ऐसा लगा, मानो
आकाश में अगणित ग्रह-तारे सब
अन्तहीन काल में
मेरे ही प्राणों कर रहे स्वीकार भार।
और फिर, मैं जानता हूं,
तुम चले जाओगे जब,
आतंक जगायेगी अकस्मात्
उदासीन जगत की भीषण निःस्तब्धता।
कलकत्ता
गहन रात्रि: 12 नवम्बर, 1940