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"कब सोया था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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कब सोया था,
जागते ही देखी मैंने-
नारंगी की टोकनी
पैरों के पास पड़ी
छोड़ गया है कोई।
कल्पना के पसार पंख
अनुमान उड़ उड़कर जाता है
एक-एक करके नाना स्निग्ध नामों पर।
स्पष्ट जानूं या न जानूं,
किसी अनजान को साथ ले
नाना नाम मिले आकर
नाना दिशाओं से।
सब नाम हो उठे सत्य एक ही नाम में,
दान को हुई प्राप्त
सम्पूर्ण सार्थकता।
‘उदयन’
21 नवम्बर, 1940