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आरोग्य की राह में
अभी-अभी पाया मैंने
प्रसन्न प्राणों का निमन्त्रण,
दान किया उसने मुझे
नव-दृष्टि का विश्व-दर्शन।
प्रभात के प्रकाश में मग्न है वह नीलाकाश
पुरातन तपस्वी का
ध्यानासन,
कल्प के आरम्भ का
अन्तहीन प्रथम मुहूर्त क्षण
प्रकाशित कर दिया उसने
आज मेरे सामने;
समझ गया उसी क्षण,
यही एक जन्म मेरा
नये-नये जन्मों के सूत्र में है गुँथा हुआ।
सप्त-रश्मि सूर्यालोक सम
वहन करता एक दृश्य
अदृश्य अनेक सृष्टि धारा को।
‘उदयन’
प्रभात: 25 नवम्बर