भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विराट सृष्टि क्षेत्र में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |अनुवादक=धन्य...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:26, 19 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
विराट सृष्टि क्षेत्र में
खेल आतिशबाजी हो रहा आकाश में
सूर्य चन्द्र ग्रह तारों को लेकर
युग-युगान्तर के परिमाप में।
अनादि अदृश्य मैं भी चला आया हूं
क्षुद्र अग्नि कणा ले
किनारे एक क्षुद्र देश काल में।
आते ही प्रस्थान की गोद में
म्लान हो आई दीपशिखा
छाया में पकड़ाई दिया
इस खेल का माया रूप,
शिथिल हो आये धीरे-धीरे
सुख दुःख नाटक साज सब।
देखा, युग-युग नटी नट सैकड़ों
छोड़ गये नाना रंगीन वेश अपने
रंगशाला द्वार पर।
देखा और भी कुछ ध्यान से
सैकड़ों निर्वापित नक्षत्र नक्षत्र के नेपथ्य प्रांगण में
नटराज निस्तब्ध एकाकी बैठे ध्यान में।
‘उदयन’
संध्या: 3 फरवरी, 1941