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"आलोक के हृदय में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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आलोक के हृदय में जिस आनन्द का स्पर्श पाता हूं,
जानता हूं, उसके साथ मेरी आत्मा का भेद नहीं,
एक आदि ज्योति उत्स से
चैतन्य के पुण्य स्त्रोत से
मेरा हुआ है अभिषेक,
ललाट पर उसी का है जय लेख,
जताया उसी ने मुझे, मैं अमृत का अधिकारी हूं;
‘परम मैं’ के साथ युक्त मैं हो सकता हूं
इस विचित्र संसार में
प्रवेश पा सकता हूं, आनन्द के मार्ग में।