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"दीदी रानी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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दीदी रानी-
अननिबट सान्तवना की खान है।
कोई क्लान्ति कोई क्लेश
मुख पर छोड़ न सका चिह्न लेश।
कोई भय काई घृणा कोई ग्लानि किसी काम मेें-
छाया न डाल सकी सेवा के माधुर्य में।
अखण्ड प्रसन्नता सदा घेरे ही रहती है उसे
रचा करती है मानो शान्ति का मण्डल;
फुरतीले हाथों से करती ही रहती है विस्तार स्वस्तिका;
आश्वास की वाणी मधुर
अवसाद को कर देती दूर।
यह स्नेह माधुर्य धारा
अक्षम रोगी को घेर
रचा करती है अपना किनारा;
अविराम स्पर्श चिन्ता का
विचित्र फसल से मानो
कर रहा उर्वर है उसके दिन-रातों को।
करना है माधुर्य सार्थक, इसी से
इतने निर्बल की थी आवश्यकता।
अवाक् होकर देखता हूं मैं उसे,
रोगी की देह में उसने क्या
दर्शन किये हैं अनन्त शिशु के आज ?
‘उदयन’
माघ 1997