भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपना घर / दीनदयाल शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:03, 22 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
एक-एक ईंट जोड़कर हमने ,
बनाया अपना सुन्दर घर.
अपने घर में रहें सहज हम,
दूजों के घर लगता डर.
बच्चे हों तो करते रौनक,
किलकारी से गूंजे घर.
बिन बच्चों के मकां है केवल,
सूना जैसे हो खँडहर .
घर हो तो हम उड़ें आसमां
लग जाते हैं जैसे 'पर'
घर जैसा भी होता घर है.
जीवन उसमें करें बसर.
आओ रलमिल बनायें सारे.
इक दूजे का अपना घर...