भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"द्वारे ठाड़ो एक भिखारी / स्वामी सनातनदेव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:56, 26 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
राग जोगिया, तीन ताल
द्वारे ठाड़्यौ एक भिखारी।
जनम-जनम की प्यास दरस की, दिन-दिन रहत दुखारी॥
पौरी पर्यौ बहुत दिन बीते, भई न कृपा तिहारी।
प्यासहि में बहु जनम बिताये, मिल्यौ न दरसन-वारो<ref>दर्शनरूपी जल</ref>॥1॥
ओ होती कछु प्रीति चरन में तो कर तो कछु रारो।
लगी विषय-रस-ईति प्रानधन! करों कहा गिरिधारी!॥2॥
ज्यों फल झरे जाय उड़ि पंछी पाय सघन कोउ झारी।
पंखहीन पै मीन जाय कित सूखे जब सर-वारी॥3॥
त्यों ही जिनहिं होत साधन-बल, तिन की चरिचा न्यारी।
मोसे साधनहीन दीनकों तुम बिनु को हितकारी॥4॥
है केवल अवलम्ब कृपा को, आयो सरन तिहारी।
हो निरबल के बल मनमोहन! यही आस उर भारी॥5॥
निरबल निज जन जानि आपुनो करिहो कृपा मुरारी!
यही आस-विस्वास लिये हौं पौरी पर्यौ तिहारी॥6॥
शब्दार्थ
<references/>