भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हिमपात / शशि पाधा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पाधा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:59, 29 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

न सुर न कोई आलाप
न आहट न पदचाप
धीमे से हिमपात ----चुपचाप-चुपचाप

गौर हिमानी उतरी नभ से
खुली पैंजनी कोमल पग से
श्वेत पाँखुरी थाप--चुपचाप-चुपचाप

सोया सूरज ओट हिमालय
धूप पुजारिन गई शिवालय
किरणें करतीं जाप ---चुपचाप-चुपचाप

निस्वर–नीरव बहा पवन
ठिठुरा-ठिठका हीरक जल कण
हरता धरती ताप –चुपचाप –चुपचाप

जोगिन हो गईं दिशा-दशाएँ
आँख मूँद कुल देव मनाएँ
मौन हुआ संलाप –चुपचाप-चुपचाप