भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शायद कोई गीत बने / शशि पाधा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पाधा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:07, 29 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

मोरपंखी कल्पनाएँ
ओस भीगी भावनाएँ
अक्षर अक्षर बरस रहे हैं
शायद कोई गीत बने।

लहरें छेड़ें सुर संगीत
माँझी ढूँढे मन का मीत
नील मणि सी रात निहारे
चंदा की अँखियों में प्रीत

तारक मोती झलक रहे हैं
शायद कोई गीत बने।

वायु के पंखों में सिहरन
डार-डार पायल की रुनझुन ,
भंवरे छेड़ें सुर संगीत
कलिकाएँ खोलें अवगुंठन ,

मधुपूरित घट छलक रहे हैं
शायद कोई गीत बने।

दो नयनों से पी ली मैंने
तेरे अधरों की मुसकान
धीमे-धीमे श्वासों ने की
तेरी खुशबू से पहचान ,

पलकों में सुख स्वपन सजे हैं
शायद कोई गीत बनें।