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"स्यामसों कैसे हियो हटै / स्वामी सनातनदेव" के अवतरणों में अंतर
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राग भैरवी, कहरवा
स्याम सों कैसे हियो हटै।
रह्यौ न हिय में ठौर औरकों कैसे लगन लटै॥
नैननि बसी छैल की छवि, को वाके निकट डटै।
रसनाकों रस लग्यो नाम को, स्यामहि स्याम रटै॥1॥
चित पै चढ़ी रहत वह चितवन, पलहुँ न कबहुँ घटै।
मुसकन की वह मधुमयि मृदिमा का के हिय न सटै<ref>चिपके</ref>॥2॥
पाछे-पाछे लग्यौ फिरत मन, तन में नाहिं डटै।
कौन करै कुल-कानि, कहो फिर कैसे कसक कटै॥3॥
लोक जाय, परलोक जाय वा रवि-सुत<ref>यमराज</ref> हूँ उपटै।
जनम-जनम की लगी लगन यह कैसेहुँ नाहिं घटै॥4॥
शब्दार्थ
<references/>