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"नमक का पानी / नीलोत्पल" के अवतरणों में अंतर
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20:11, 18 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
घंटे भर से रो रही है
वह औरत
जहां वह रो रही है
वह जगह उसकी नहीं है
शायद किसी दूसरे की भी नहीं
वह रास्ता है
लोग निकलते हैं
और उसका रोना देख
ठहर जाते हैं कुछ देर के लिए
कुछ देर के लिए लगता है
जैसे शामिल होने जा रहे हों
जैसे दौड़ ही पड़ेगा अभी कोई
उसे समझाने के लिए
लेकिन पाँव आगे बढ़ते नहीं
लोग निकल रहे हैं
और ऐसा चल रहा है
जबकि
पत्ते गिर रहे हैं लगातार
मिट्टी सोख रही है नमक का पानी
सुखा देगी हवा उसके गालोें पर ठहरे दुख को
लेकिन ऊपर ही ऊपर तैरते शब्द
नहीं जान पाएंगे
वह नमक का पानी
कितने समुंदर का मथा है
कितने अहसास डूबे हैं उसके भीतर