भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चंद तरह के आसमान पर / नीलोत्पल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह=पृथ्वी...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:06, 22 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
कुछ नहीं है इस तरह
कि हवाओं की रिक्तता में
उछाले गए शब्द
मिले तुम्हें
अपनी जगह पर
यहां न रक़्त लगातार है
न मौसम बदलने वाले पेड़
जब किसी तरह की सफल केमेस्ट्री बनाकर
कहा जाता है-
“ आल इज़ वेल”
मैं नहीं जानता ऐसी रोशनी को
जो गिरती हैं
चंद तरह के आसमान पर
जहां बादल छँटने के बाद
कुछ साफ़ नहीं होता
जो साफ़ है वह घिर जाता है पुनः
बातें केवल संकेत भर हैं
और कुछ नहीं
उनके साथ या उनके ख़िलाफ़
हम तैयार करते हैं
एक विकल्प अपनी भूमिका के लिए
मैं फिर दोहराता हूं
“ आल इज़ वेल ”?
जबकि गयी रात कत्ल के बाद
फ़र्श धोयी जा रही है
बातों और इशारों का दौर जारी हैं
नहीं है तो वह चीख़ और ख़ामोशी
जो कि ज़ब्त कर ली गयी है
दीवारों की ओट में