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"रंगों के छींटे / नीलोत्पल" के अवतरणों में अंतर

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11:33, 23 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

मैं बता नहीं पाऊंगा
हवा में लहराते उनके हाथों के अंदाज़ को
कि वे जहां और जिस दिशा में
ब्रश उठाते हैं
एक चमकदार दीवार सांसें लेने लगती है

अपने खोए सपनों के विस्तार में
एक परिंदा
आकाश में उतरता है
रोशनदान खोलने के लिए

मैं उनके उठने-बैठने को नहीं जानता
लेकिन जब वे रंग घोलते हैं
कम पड़ जाती हैं शब्दों की सीमाएं

मैं शब्दों को नहीं डूबो पाता
उनकी तरह
कि बाहर निकालने पर मौजूद हों
कुछ छींटे मेरे आसपास,
दीवारों और ज़मीन पर
जहां पर सांस लेते हुए
बता सकं अपनी उपस्थिति

अमूमन वे गहराई में नहीं जाते
लेकिन सतह पर उतना भी नहीं कि
छुए जा सकें

हम एक तरह के परदे के भीतर से
उन्हें देखते हैं
जहां रंगों के छींटे
हमारी ओर उछालकर
वे पिघला रहे हैं बर्फ़ो की सिल्लियां
उन रंगों के लिए
जो सूख चुके हैं हमारे जीवन में