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"पारदर्शिता के सारे आग्रह / नीलोत्पल" के अवतरणों में अंतर

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11:37, 23 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

मैं इतना पारदर्शी नहीं
कि आईनों से गुज़र जाऊं
बेशक मैं छिपाता हूं ख़ुद को
उन चीज़ों के लिए, उन चीज़ों के द्वारा
जो मुझे सिर्फ़ बचाती है दुनिया से
यह बचने और बने रहने की कला है

उफ! यह कितनी उबाऊ और जानलेवा है

मेरा सच मेरी उंगलियों में है
मैं उंगलियां निचोड़ता हूं
मैं जानता हूं मेरे रक्त को सच की ज़रूरत है

यह दो आसमानों की बात नहीं
मैं धरती पर रहता हूं
मैं दूर तलक फैला हुआ हूं असभ्य जड़ों की तरह

मुझे अब और मत सिखलाओ
मैं ज़्यादा हिंसा बर्दाश्त नहीं कर पाउंगा

मैं इतनी जगहों पर गया कि
मुझे ढेरों दर्शन और ज्ञान मिला
बहुत सारी दृष्टियां, बहुत सारे लोग
अनगिनत व्यापार, कलाएं और धर्म

जीवन इतने अरमानों और झूठ से भरा है
कि मैं इतनी चीज़ों में ठसने के बाद भी
पारदर्शी नहीं बन पाया

ओह! दोस्तों
मुझे पत्तों की तरह उड़ा दो
मुझे उन्मुक्त रहना सिखलाओ

        - 2 -

पारदर्शिता के सारे आग्रह भीतर थे
जीवन तो वैसा था ही नहीं
इसमें तो बहुत सारी रेत थी

जहां होता था सिर्फ धंसना ही होता था
फिर चाहे
वह रोशनियों का धंसना हो
कविताओं का
या हमारा

हम लगातार धंस रहे थे जीवन के शुष्क
रेगिस्तान में

मुझे मिले तो सिर्फ़ जीवन पर गिरे हुए परदे
बाकी जो आंखों के सामने थी
वे चीजें थी लगातार हमें
अघोषित करती हुई