भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मूकदर्शक / नीलोत्पल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह=पृथ्वी...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:33, 23 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
इतनी छोटी-छोटी बाते
जिनसे मैं लड़ भी नहीं पाता
रोज़ होता हूं परास्त
समझता हूं एक घिसे दिन को
मच्छरों और चीत्कारों ने घेर लिया है मेरा कमरा
मैं केवल परछाईयों में व्यक्त होता हूं
दिखना जिन चीज़ों का है
वे तुम्हारी हैं
मैं क्रास लगाता हूं अपनी पसंद पर
सोचता हूं अधिकारों की बात
जो दिए नहीं गए
मेरी अभिव्यक्ति इतनी बौनी रह गई है कि
उनसे बाथरूम का एक कीड़ा भी
सरक नहीं पाता
मुझे जिनसे प्यार था
वे बातें ज़्यादातर हल्की और सतही फिल्मों में ही थीं
वह तो भला हो उस कैमरे का
जिसने मुझे बचा लिया
वर्ना मैं भी तुम्हें लुभाता हुआ नज़़र आता
और तुम मुझे समझने के बजाए
घेरने लगते
कितना आसान है इस तरह समझना
कि मैं एक मूकदर्शक हूं