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"शिकायत / अरविन्द कुमार खेड़े" के अवतरणों में अंतर
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तुम्हारे पास होंगे
कई चेहरे
मेरे पास तो बस
एक ही चेहरा है
उसी को
सही ढंग से
ओढ़ नहीं पाता हूँ
आँखों को
हरदम रहती है शिकायत
चेहरे कर विरुद्ध
चेहरे के भावों को
उजागर करना पड़ता है
और बीच-बीच में
बड़ी पेचीदगियों के बीच
देखना पड़ता है
उस पार भी.