भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फसल ऐसे नहीं / अरविन्द कुमार खेड़े" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					Sharda suman  (चर्चा | योगदान)   ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द कुमार खेड़े |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)  | 
			
(कोई अंतर नहीं) 
 | 
17:12, 26 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
फसल ऐसे नहीं 
लहलहाती है
कि बो दो बीज 
उगा लो
लाख जान लो
मिटटी की प्रकृति 
लाख हो मौसम के अनुसार बीज
लाख हो बीज के अनुकूल जलवायु 
उम्मीद की जा सकती है 
उपजेगी भरपूर फसल 
सयाना किसान 
पहले बोता है भरोसा 
उगाता है सपनें
बंजर जमीन भी
भर देती है पेट
कणाद का
फसल ऐसे नहीं 
लहलहाती है
	
	