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"फसल ऐसे नहीं / अरविन्द कुमार खेड़े" के अवतरणों में अंतर

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फसल ऐसे नहीं
लहलहाती है
कि बो दो बीज
उगा लो
लाख जान लो
मिटटी की प्रकृति
लाख हो मौसम के अनुसार बीज
लाख हो बीज के अनुकूल जलवायु
उम्मीद की जा सकती है
उपजेगी भरपूर फसल
सयाना किसान
पहले बोता है भरोसा
उगाता है सपनें
बंजर जमीन भी
भर देती है पेट
कणाद का
फसल ऐसे नहीं
लहलहाती है